रविवार, 3 अप्रैल 2011

नारी शक्ति का पर्याय है नवरात्रि

प्रतिवर्ष चैत्र में वासंती नवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। इस त्योहार के नौ दिनों में शक्ति स्वरूपा जगत जननी मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्माचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नवें दिन सिद्धिरात्रि की साधना का विधान है। मां दुर्गा के ये सभी रूप मनुष्य के सभी मनोरथ पूरे करने वाले हैं।

हिंदू संस्कृति में नारी शक्ति का पर्याय मानी जाती है। नवरात्रि के अवसर पर कुमारी कन्या के पूजन की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। कुमारी कन्या को साक्षात मां दुर्गा का स्वरूप समझ कर उसकी पूजा की जाती है। श्रीशिव महापुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार सतयुग से पूर्व श्रावण शुक्ल तृतीया हरियाली तीज के दिन से पार्वती जी ने 61 दिनों का व्रत भगवान शिव को पति रू में प्राप्त करने के लिए किया और मनौती मानी कि 61 दिनों के बाद 9 कन्याओं की पूजा-अर्चना करूंगी, इन्हें आभूषण, श्रृंगार सामग्री अर्पण करूंगी। महर्षि नारद को जब यह बात पता चली तो उन्होंने पार्वती जी से कहा कि 61 दिनों की पूर्ति के बाद नवरात्रि आती है। अत: नवरात्रि में ही कन्या पूजन श्रेयस्कर होगा।

कन्या पूजन का विधान

नवरात्रि पूजा विधि का एक अनिवार्य अंग कुमारी पूजा माना गया है। इसमें शक्ति का रूप मानकर एक से सोलह वर्ष तक की कन्याओं के पूजन का उल्लेख मिलता है। वय रम से इनके ये नाम दिए गए हैं- संध्या, सरस्वती, त्रिधामूर्ति, कालिका, सुभगा, उमा, मालिनी, कुब्जिका, कालसंकर्षा, अपराजिता, रूद्राणी, भैरवी, महालक्ष्मी, पीठनायिका, क्षेत्रज्ञा और अन्नदा। सामर्थ्य हो तो नवरात्र पर्यत और न हो तो समाप्ति के दिन कुमारी कन्या की गंध-पुष्पादि से पूजा करके मिष्ठान्न भोजन कराना और दक्षिणा देनी चाहिए। एक कन्या के पूजन से ऎश्वर्य की, दो से भोग और मोक्ष की, तीन से धर्म, अर्थ, काम की, चार से राज्यपद की, पांच से विद्या की, छह से इष्टकर्मसिद्धि की, सात से राज्य की, आठ से संपदा की और नौ से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।

हवन एवं विसर्जन

दुर्गा पूजा में प्रतिपदा को केश के संस्कार करने वाले द्रव्य-आंवला और सुगंधित तेल आदि, द्वितीया को बाल बांधने के लिए रेशमी डोरी, तृतीया को सिंदूर और दर्पण, चतुर्थी को मधुपर्क, तिलक और काजल, पंचमी को अंगराग, अलंकार तथा षष्ठी को फूल आदि समर्पण करें। स#मी को गृह मध्य पूजा, अष्टमी को उपवास पूर्वक पूजन, नवमी को महापूजा और कुमारी

0 टिप्पणियाँ (+add yours?)

एक टिप्पणी भेजें