मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

चंद्रमा से सुंदर है मां चंद्रहासिनी

प्रस्तुति :- रतन जैसवानी जांजगीर
फोटो- कमल अग्रवाल चंद्रपुर

सती के अंग जहां-जहां धरती पर गिरे थे, वहां मां दुर्गा के शक्तिपीठ माने जाते हैं। महानदी व माण्ड नदी के बीच बसे चंद्रपुर में मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम जगत में फैल रही है, लेकिन इसका स्वरूप चंद्रमा से भी सुंदर है। माता चंद्रसेनी के दर्शनमात्र से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और मां अपने भक्तों की मनोकामनाएं दो अगरबत्ती व फूल से ही पूर्ण कर देती है।

चंद्रपुर जिला मुख्यालय जांजगीर से 120 किलोमीटर तथा रायगढ़ से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां माता चंद्रसेनी का वास है। चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता से घिरे चंद्रपुर की फिजां बहुत ही मनोरम है। एक ओर जहां महानदी अपने स्वच्छ जल से माता चंद्रसेनी के पांव पखारती है, वहीं दूसरी ओर माण्ड नदी क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी से कम नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व चंद्रपुर मंदिर पुराने स्वरूप में था, लेकिन जब से ट्रस्ट का गठन हुआ, इसके बाद से मंदिर व परिसर का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। मंदिर का मुख्यद्वार इतना आकर्षक और भव्य है कि यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु उसकी तारीफ किए बगैर नहीं रूकते। इसके बाद मंदिर परिसर में अर्द्धनारीश्वर, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चीरहरण, महिषासुर वध, चारों धाम, नवग्रह की मूर्तियां, सर्वधर्म सभा, शेष शै्यया तथा अन्य देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां जीवन्त लगती हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में ही स्थित चलित झांकी महाभारत काल का सजीव चित्रण है, जिसे देखकर महाभारत के चरित्र और कथा की विस्तार से जानकारी भी मिलती है। दूसरी ओर भूमि के अंदर बनी सुरंग रहस्यमयी लगती है और इसका भ्रमण करने पर रोमांच महसूस होता है। वहीं माता चंद्रसेनी की चंद्रमा आकार प्रतिमा के एक दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चंद्रहासिनी माता का मुख मंडल चांदी से चमकता है, ऐसा नजारा देश भर के अन्य मंदिरों में दुर्लभ है। चंद्रहासिनी मंदिर के कुछ दूर आगे महानदी के बीच मां नाथलदाई का मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि मां चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई के दर्शन भी जरूरी है। अन्यथा माता नाराज हो जाती है। यह भी कहा जाता है कि महानदी में बरसात के दौरान लबालब पानी भरे होने के बाद भी मां नाथलदाई का मंदिर नहीं डूबता। एक किंवदंति के अनुसार हजारों वर्षो पूर्व सरगुजा की भूमि को छोड़कर माता चंद्रसेनी देवी उदयपुर और रायगढ़ होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आती हैं। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर यहां पर वह विश्राम करने लगती हैं। वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुलती। एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से गुजरती है, तभी अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और माता की नींद खुल जाती है। फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहां मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं। संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। देवी की आकृति चंद्रहास जैसे होने के कारण उन्हें ‘‘चंद्रहासिनी देवी’’ भी कहा जाता है। राजपरिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहां के जमींदार को सौंप दिया। यहां के जमींदार ने उन्हें अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना की। इसके बाद से माता चंद्रहासिनी की आराधना जारी है। यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं वर्ष के दोनों नवरात्रि पर्वो पर मेले जैसा माहौल रहता है। छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के श्रद्धालु यहां नवरात्रि में ज्योति कलश प्रज्जवलित कराकर मां से अपने सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी करने के लिए यहां बकरे व मुर्गी की बलि देते हैं। वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन श्री गोपालजी महाप्रभु एवं मां चंद्रहासिनी मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है।

कैसे पहुचें चंद्रपुर

चंद्रपुर पहुंचने के लिए श्रद्धालु रेलमार्ग से रायगढ़ या खरसिया स्टेशन में उतरकर बस व अन्य वाहनों से माता के दरबार पहुंच सकते हैं। इसके अलावा जांजगीर, चांपा, सक्ती, सारंगढ़, डभरा से चंद्रपुर जाने के लिए दिन भर बस व जीप आदि की सुविधा है। यात्री यदि चाहे तो चांपा या रायगढ़ से प्राइवेट वाहन किराए पर लेकर भी चंद्रपुर पहुंच सकते हैं।

3 टिप्पणियाँ (+add yours?)

ALOK ने कहा…

JAI SRI SRI CHANDRAHASINI DEVI MAA KI JAI

Unknown ने कहा…

Raigarh Station se bus ya city bus chalta hai Kya Maa chandrahasni mandir k liye?? Kripya batae.

Unknown ने कहा…

Jai Maa Chandrahashini.

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